QUOTES ON #घोड़ेगधे

#घोड़ेगधे quotes

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14 JUN 2018 AT 14:24

जब से नरेन्द्र मोदी जी पी.एम.हुए..

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15 JUN 2018 AT 12:05

सब पर एक सा तलवार
ज्ञान नहीं जिसे कुछ भी दिया शासन का पतवार
दिया शासन का पतवार और दे दी सम्पत्ति
कर के ये सब ले लिया सर पे विपत्ति
अरे गधों को थोड़ा ज्ञान का चारा खिलाओ
घोड़ों के अस्तबल में गधे को आरक्षण दिलवाओ

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14 JUN 2018 AT 17:29

घोड़ों का था मुशायरा
गधे सारे देख रहे
कहा सबसे एक ने
आओ मिल कर तोड़ें
हम भी अपना दायरा
गधों की लम्बी कतार में
सबसे पीछे हम थे खड़े
सोच रहे थे IQ का तो पता नहीं
YQ पर घोड़ों से कैसे भिड़ें
पर जब गधों ने थी ठान ली
तो हमने भी उनकी मान ली
रिकॉर्ड YQ के सारे ब्रेक हुए
अब दोनों शायरी कर रहे
घोड़े गधे सब एक हुए
😃😃😃

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14 JUN 2018 AT 14:59

घोड़ों से रेस लगाने गधे सब अपग्रेड हुए
😁

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2 DEC 2018 AT 14:37



वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के कारण, घोड़े-गधे, सब एक समान हो गए हैं।काबिल धूल फांक रहा है और नाकाबिल मौज उड़ा रहा है।आज अंबेडकर जी की आत्मा भी रो रही होगी, जिन्होंने आरक्षण का प्रावधान जातिगत-समता के लिए किया था, परंतु नेताओं द्वारा इसका इस्तेमाल राजनीतिक गुणा-भाग के लिए अनवरत हो रहा है।
कोई भी समाज एवं देश तब तक विकसित नहीं हो सकता, जब तक किसी भी समाज के साथ भेदभाव होता रहेगा।किसी एक को खुश करने के लिए, दूसरे की बलि चढ़ाना, कहां तक उचित है!इससे तो जातिगत भेदभाव एवं द्वेष ज्यादा विकराल होगा, जो कि संविधान के प्रावधानों का भी उल्लंघन है।अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं, जब आरक्षण के विरूद्ध एक प्रचंड आंदोलन शुरू होगा, जिसको संभालना बहुत मुश्किल होगा।नीति-निर्माताओं अब भी नहीं चेते तो बहुत देर हो जाएगी. इसलिए राजनीतिक-स्वार्थों को छोड़कर, देशहित में फैसला कीजिए।

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14 JUN 2018 AT 17:30

घोडे गधे सब एक हुए
लोगो के अत्याचार से
सब भयभीत हुए ...
कौन समझाए इन लोगों को
पशु भी एक जीव होए ।।

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14 JUN 2018 AT 13:16

जब बात आई भारतीय बन ने की।

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15 JUN 2018 AT 8:17

घोड़े गधे सब एक हुए:

हम न लेखक हैं, न अदीब, न कवि, न शायर। हमें ठीक से समझने के लिये कुछ दूर चलना पड़ेगा हमारे साथ। मुखाकृति मनुष्यों जैसी है कुछ कुछ... चेहरा किताबी, माथा नूरानी...लफ़्जगिरी भी खूब सीख गए हैं हम। उच्च श्रेणी के उपदेशक भी हैं भले निजी जीवन मे उससे कोई वास्ता हो.. न हो। जुबान कुछ और है मगर उसे छोड़कर सब अलग-अलग जुबान के लोगों से मिलते जुलते रहते हैं ताकि चार अक्षर सीख कर हम भी भद्र लोक में उठने बैठने के काबिल हो जायें। थोड़ी क्लिष्ट भाषा सीख जाएंगे तो लोग घास डालते रहेंगे.. गाहे बगाहे वर्ना भूखों मरना पड़ेगा। आज जो बातें करेंगे कल खुद ही बुद्धिमानी के चक्कर में उसका खंडन कर बैठेंगे.... निरा गधे जो ठहरे।
तो क्या हुआ, अपनी जी तोड़ मेहनत से हमने अकादमी के घोड़ों के बीच अपनी जगह बना ली है यही क्या कम है। कौन सा हमें लंबी रेस में जाना है वहाँ तो पहले से ही अरबी घोड़े तैयार बैठे हैं।
अब हम विदा लेते हैं, हमारे रियाज़ का वक़्त हो रहा है ....

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14 JUN 2018 AT 13:38

जब होशियार लोग भी ,
भविष्य में इंजीनियर हुए ।

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14 JUN 2018 AT 13:35

जब से राजनीति के ढ़ंग बेढ़ंग हो गये
गधे और घोड़े एक ही रंग हो गये

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