"आख़िर एक पत्नी चाहती ही क्या है, ज़रा सी देखभाल, ज़रा सा समय और ध्यान... तू पढ़ा लिखा होकर ऐसे सोच भी कैसे सकता है, केवल बैडरूम में होने वाला ही प्यार नहीं"....
बालकॉनी में अपने मित्र को फ़ोन पर समझाते हुए वो कह रहा था, उसकी बातों में वजन हमेशा से ही रहा है, आख़िर हो भी क्यों ना, एक सफल लेखक जो अक्सर "स्त्रियों" के इन्ही दबे पहलुओं को कागज़ पर उकेरने में माहिर था।
चाय का कप होंठो से लगाकर, बेडरूम में तैयार हो रही पत्नी को आँखों से ही जल्दी करने का इशारा किया, पर उसे वक़्त लग रहा था, "थप्पड़" के निशान को मेकअप से छुपाने में, छुपाना लाज़मी भी था,
"घरेलू हिंसा" पर लिखी "इनकी" बुक लॉन्च पार्टी में जो जाना था....
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