QUOTES ON #घरेलू

#घरेलू quotes

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15 FEB 2020 AT 22:30

मृत्तिका-सम हूँ मैं नारी
हर रूप में,मैं ढल जाती हूँ
रौंदते हो कभी पद-तल नीचे
कभी तुम शीश झुकाते हो।

प्रेम-स्पर्श पाकर मैं
कितने रिश्तों में रच जाती हूँ
कभी माँ,बहन,बेटी होकर
कभी प्रिया बन साथ निभाती हूँ।

रिश्तों में बहु बदलाव हुए
पर प्रेम रंग नहीं बदलता है
तुम पर सब कर दूँ मैं अर्पण
फिर संपूर्ण सा लगता है।

अहं ग्रसित पुरुषत्व तुम्हारा
जब अधिकार जताने लगता है
भयांकित हृदय मेरा मत पूछो
तब कितने आँसू पीता है।

एक तुम्हारे स्पर्श के अंतर से
क्या से क्या हो जाती हूँ
कभी स्वरूप निखरता है मेरा
कभी बिखर मृत-प्राण कहलाती हूँ।

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2 JUN 2017 AT 2:06

मैं और कर भी क्या सकता था
(full poem in caption)

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3 JUN 2019 AT 13:51

दोनों को ज़िद प्यारी थी।
झुकना किसे मंजूर यहाँ
लड़ मारने की तैयारी थी।
दोनों को ज़िद प्यारी थी।

माँ माने ना माने बेटा।
बापू पहुँच चुके थे ठेका।
बस पीने की तैयारी थी।
दोनों को ज़िद प्यारी थी।

इतनी देर में आये भैया।
मुश्किल से फिर मानी मैया।
बस पीहर की तैयारी थी।
दोनों को ज़िद प्यारी थी ।







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14 SEP 2020 AT 16:22

// घरेलू नुस्खे //

घर में बने
सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करो
अपनी सुंदर त्वचा को पाने का
सपना साकार करो

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27 APR 2017 AT 9:55

चाहे मुझे तू रोज मारता
समाज तूझे कहे मेरा देवता

पीटना तेरी मर्दानगी है
सहना मेरे संस्कार है
इसलिए तू मुझे रोज मारता
समाज फिर भी कहे तू मेरा देवता

मुझे घर में रखे सामान की तरह
ना दिया कोई हक मेहमान की तरह
फिर क्यों तू मुझे रोज मारता
और समाज कहे तू मेरा देवता

मुझे हर हाल में चुप रहना है
मेरे शरीर पर तेरा हक पहला है
शायद तभी तो तू मुझे रोज मारता
समाज ने भी कह दिया तू मेरा देवता

मां ने सिखाया रिश्ते निभाना
नहीं सिखाया विरोध जताना
चाहे तू मुझे रोज मारता
समाज फिर भी कहता तू मेरा देवता ।।

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17 NOV 2019 AT 15:01

मृत्तिका-सम हूँ मैं नारी
हर रूप में,मैं ढल जाती हूँ
रौंदते हो कभी पद-तल नीचे
कभी तुम शीश झुकाते हो।

प्रेम-स्पर्श पाकर मैं
कितने रिश्तों में रच जाती हूँ
कभी माँ,बहन,बेटी होकर
कभी प्रिया बन साथ निभाती हूँ।

रिश्तों में बहु बदलाव हुए
पर प्रेम रंग नहीं बदलता है
तुम पर सब कर दूँ मैं अर्पण
फिर संपूर्ण सा लगता है।

अहं ग्रसित पुरुषत्व तुम्हारा
जब अधिकार जताने लगता है
भयांकित हृदय मेरा मत पूछो
तब कितने आँसू पीता है।

एक तुम्हारे स्पर्श के अंतर से
क्या से क्या हो जाती हूँ
कभी स्वरूप निखरता है मेरा
कभी बिखर मृत-प्राण कहलाती हूँ।

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22 FEB 2017 AT 15:43

उसकी चूड़ियाँ खनकती थी
अब शोर मचाती हैं।


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18 OCT 2020 AT 10:55

लाख बड़ी बात हो,
अगर औरत पर हाथ उठाते हो..
तो सुनो,
मर्द नही..
बल्की नामर्द हो तुम...!!!

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15 JUL 2017 AT 20:41

नारी हूँ
जैसे कोई बीमारी हूँ
बोलते सब त्याग की मूरत हूँ
चाहतों की प्यारी सूरत हूँ
पलंग की तुम्हारी गर्मी हूँ
तेरे तन को देती नरमी हूँ
कुँवारे में कराहते हो
मजनूं के समान पुचकारते हो
जो फट जाती मांग मेरी
वही तुम दुत्कारते हो
तेरे बच्चों की छाया हूँ
पर तुम्हें लगता महज मैं एक काया हूँ
भोग लगाते नित्यदिन तुम
जैसे तुम्हारे हवस की एक साया हूँ
बात बात पे गाली थमाते
माँ बाप को हर समस्या में बुलाते
जैसे तुम नामर्द एक बस माया हो
हाँ मैं तेरी नारी हूँ
और तुम जैसे कोई बलात्कारी हो!

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30 MAY 2017 AT 2:13

दिल का आलम तो
अभी पता नहीं उनको,
और सिर्फ चेहरे की
खरोंच देख कर रो पड़े

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