गुनाहों की चादर ओढ़े मुज़रिमों के सबूतों का कटघरा-ए-अदालत पर हाँ, "जवाब" नहीं था। जो अपनों ने कोशिशें बहुत की हमें बचाने की मुझे "ज़िंदा" रखने का उनका "ख्वाब" सही था।
ऐ ईश्वर! तेरे दुआओ की इतनी सी चाहत मुझे , मेरे घरवालों की लबो पे हमेशा मुस्कुराहट रहे , मेरे कसूरों की सजा इनके अक्श पे भी ना पड़े , आखिर तेरा वजूद भी तो मोहताज है मेरे गुनाहों की ।