QUOTES ON #गेहूँ

#गेहूँ quotes

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12 FEB 2021 AT 20:14

गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्‍त होता है।

गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्‍या चाहते हैं - पुष्‍ट शरीर या तृप्‍त मानस? या पुष्‍ट शरीर पर तृप्‍त मानस?

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24 SEP 2019 AT 15:01

दुध के दाँत ही फूटे हैं गेहूँ की बाली
किसान को करनी है और रखवाली
धुप में तपाकर इसे कुन्दन करना है
तब तपती भूमि का मुंडन करना है
छाँटकर गेहूँ--भूंसा अलग करना है
स्वयं का और पशु का पेट भरना है

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24 JAN 2020 AT 2:48

गेहूं की खड़ी फसल में
दूध के दाने भरने लगे हैं
सोने का पानी चढ़ाने
लगी है प्रकृति
धीरे-धीरे लेगी गेहूं
पूर्ण स्वर्णाकृति
जैसे बच्चों के
दुध के दांत निकलते हैं
उसके बाद ठोस दांत
उभरकर आते हैं
गेहूं भी बनेगी ठोस
तभी तो सकेगी
पाल-पोस
अन्नदाता को कुछ मिले न मिले
अन्न का मोल है अनमोल
प्रथम अन्न अन्नदाता के नाम
वही तो करते हैं
हमारी क्षुधापूर्ति का काम..

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26 APR 2020 AT 8:36

रे मेघा नहीं बरस
हम अन्न को जाएंगे तरस
गेहूँ अभी कटी नहीं है
फसल थी‌ बहुत सरस
रे मेघा नहीं गरज
अब सुन लो हमरी अरज
ऋतु ऋण मानव चुका रहा
विस्मृत निहार अचरज
रे मेघा तनिक ठहर
तनिक सुख जाए अरहर
नाहीं कर तू छिन्न-भिन्न
अन्नदाता की धरोहर
रे मेघा पावस में आना
धान की कोंपल महकाना
ठुमक ठुमक कृषक वसुधा
अन-धन घर भर जाना

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29 DEC 2021 AT 0:38

जब पिसना ही है तो गेहूँ बनो, घुन नहीं।

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7 FEB 2020 AT 8:08

गेहूँ के खेतों में
लद गई हैं बालियाँ
फसलें झुम झुमकर
मार रही हैं किलकारियाँ
प्रकृति सोने के पानी में रंगकर
गेहूं के अंग अंग कर
सौंप देगी वसुधा को
अन्नदाता काटेंगे फसल
वसुधा का मुंडन संस्कार होगा
धरती और अन्नदाता में
कितना प्यार होगा..

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2 MAY 2021 AT 17:48

मैं कौन हूँ?
शायद गेहूँ की वो अधपकी बाली
जो सूरज की धूप सह
सुनहरी हो जाती है
और फिर काट दी जाती है
अपनी जड़ों से
पिसने के लिए

(आगे की सोच अनुशीर्षक में)

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12 APR 2020 AT 12:21

रुधिर हृदय में उफनाई
रोम-रोम ले अंगड़ाई
मस्तिष्क उद्घोष कराई
युद्ध कठिन है आई

मायावी शत्रु है छाई
चहुंओर महामारी छितराई
उस पर से कुछ पृथक कसाई
कर रहे हैं जगहंसाई

सर्व चिकित्सा औषधाई
आवश्यक सब इकाई
आमजनों की चक्षू टकटकाई
राशन दुध दवाई

गेहूँ फसल है लहलहाई
श्रमिक नहीं हैं कटाई
सरकारी कागज कार्रवाई
मशीन कहाँ है हरजाई

चिता कोरोना ने है सजाई
अन्न बिनु देह भरमाई
भूखे बड़िकन संग लड़काई
विकट प्रकृति शत्रुताई

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16 APR 2020 AT 22:31

गेहूँ के थनों में दूध पक आया है
फूट फूटकर गिर रहे हैं दाने..
दानों की ताजी गंध से
चिड़ियों की भूख
खेतों पर मंडराने लगी है
चूहों ने गस्त लगाना शुरू कर दिया है

इससे पहले
गेहूँ की मादक गंध
बलाओं को आमंत्रित करे
फसल को काट लिया जाए

यह न केवल
रोटी का... प्रश्न है
यह...
गाय गोरूओं के बच्चों के
ताजे भूसे का आश्वासन भी है..... ।

कविता

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20 APR 2020 AT 9:49

मुंडन संस्कार भूमि का
स्वर्ण केश को काटकर
विपदा को विफल करें
अन्न अनिवार्य बांटकर

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