हम सब मिट्टी के पुतले हैं,
सब मिट्टी ही हो जाना है।
कुछ दिन रहना है दुनिया में
फिर मिट्टी में सो जाना है।
क्या शोहरत पर इतराता है,
क्या दौलत पर इठलाता है,
दो दिन की चमक-धमक बंदे!
गुमनाम कहीं खो जाना है।
क्यों कुछ खोने पर रोता है,
कंटक जीवन में बोता है,
तू क्या लेकर के आया था
क्या लेकर तुझको जाना है।
जो आज है कल वह रूप नहीं,
अब छाँव नहीं कल धूप नहीं,
इक दिन हँस लेना है हमको
इक दिन हमको रो जाना है।
न रहना हमको सदा यहाँ,
न रहना तुमको सदा यहाँ,
जब तक रहना है इस वन में
कुछ फूल भले बो जाना है।
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