दिल की बातें गिरवी रखकर
मन की बातों को समझाऊँ
या फिर दोनों ही बातों को, एक-एक करके दुहराऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ
ग़म की गहराई से निकलूँ
याकि उसमें डूब ही जाऊँ
या ग़म की कश्ती में बैठ, खुशियों के उस पार हो जाऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ
हालात पे अपने खुश हो जाऊँ
याकि मैं रोऊँ, चिल्लाऊँ
पास कोई गर आ जाए, तो गले लगाऊँ या ठुकराऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ
-