QUOTES ON #गाँवशहर

#गाँवशहर quotes

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4 DEC 2018 AT 23:01

शहर के घर में तो केवल हैं दिवारें और छत
देखना आँगन हो गर तो गाँव जाना चाहिए।।

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5 APR 2018 AT 22:38

घर में कमरे हुआ करते थे तब
कमरों में हो गया है घर अब।।

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6 OCT 2017 AT 2:14


अक्सर सवाल करती हूँ खुद से
'मैं तेरे लिए क्या हूँ"

मैं तेरे लिए "गाँव" हूँ
जहाँ तू बिना बताए बिना कुछ पूछे
जब मन चाहे आए, जाए
मैं करती रहूँगी इंतज़ार तेरा
और आने पर तेरे
बिना किसी शिकायत के तुझे भर लूंगी बाँहों में ऐसे जैसे लिपट जाती हैं कलियाँ

और फ़िर ये ख्याल भी झकझोरता है मुझे
की तुम मेरे लिए "शहर" हो
बहोत दिलकश, बेहद अजीज़ पर दूर इतना जैसे चाँद है ज़मीं से
जिसकी रंगीनियाँ देख तो सकती हूँ पर नज़दीकियां महसूस करना बस ख़्वाब भर है
जो मेरा होकर भी मेरा हो नहीं पाता
हरपल साथ है पर साथ दे नहीं पाता

मैं शहर हो नहीं सकती तू गांव हो नहीं पाता।।


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14 JUN 2020 AT 14:33

यूँ जिंदगी की धूप छाँव से आगे निकल गये,
हम ख्वाइशों के गाँव से आगे निकल गये
तूफाँ समझता था कि हम डूब जायेंगे,
आँधियों में हम फ़िज़ाओं से आगे निकल गये।

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27 MAY 2020 AT 14:17

लहराती फसलें आपस में हुई मशगूल
गाँव की पगडंडियों से उड़ती हुई धूल

माँ-बाप और भाई-बहन की ममता को
समेटे हुए ग्रामीण जीवन के कई मूल

एक रोज मुझसे रोजगार की खातिर
अपनों को छोड़ देने की हो गई भूल

दिन और रात रहता है एक दर्द सीने में
बैचेन मन जैसे चुभ रहा हो कोई शूल

हर सप्ताह घर से अधूरा लोट आता है
इस कदर मुरझा गया मां का कोई फूल

शहर में हर घड़ी इम्तिहान है "कपिल"
गाँव की जिंदगी में नहीं थे कोई उसूल

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6 MAY 2019 AT 12:40

जलती धूप में जब कदम लड़खड़ाते हैं
मुझे गाँव के वो मिट्टी के घर याद आते हैं

कर्म के पथ पर बहुत बार थक जाता हूँ
मुझे तब हँसी के वो पल याद आते हैं

वो गाँव के लहलहाते हुए हरे भरे खेत
श़हर में मुझे अब कहाँ मिल पाते हैं

गाय के गोबर से पुता देख भी खुश़ था मैं वहाँ
श़हर के महंगे रंग भी सब फींके पड़ जाते हैं

"कोरे कागज़" से बेरुखे लोग हैं श़हर में अब
गाँव के मिट्टी के घर इनको अब कहाँ भाते हैं।

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9 MAR 2022 AT 17:27

छत पर बरामदे में एक ढेले से बँधी हुई जो गंदी सी एक पुड़िया ज़मीन पर पड़ी थी, वह बाद में प्रेमपत्र साबित हुई।

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5 APR 2018 AT 15:23

रिश्ते ढूढ़ने हो तो.................गांव जाइए
भीड की तन्हाई से मिलने.....शहर आइए

असलियत के फूल....गांव में खिलते है
शहर में माँ बाप...वृद्धाश्रम में मिलते है

भाईचारा प्रेम स्नेह और.....ईमानदारी
शहर की नही ये गांव की है....बीमारी

गाँव मे आदमी....आदमियत से मिलता है
शहर का आदमी.......आदमी से जलता है

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1 MAY 2019 AT 19:23

शहरों में दुपट्टा फैशन हो गया है
मग़र गांवों में 'चुनरी' आज भी रिवाज है।

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9 JUN 2020 AT 16:58

झुलस सा गया है मेरा अवचेतन,
ये आधुनिक धूप न होती अब सहन।
अबोध बालपन मे खेले थे जिस संग,
उसी पीपल की ठंडी छाँव लौटा दो,
हे नगर, मुझे मेरा गाँव लौटा दो।

विचलित सा रहता है भीड़ मे भी मन,
गगनचुंबी इमारतों के मद्य मेरा अधना तन।
सपने सँजोह बहा दिये थे सभी जिस मे,
काग़ज़ की वही स्वप्निल नाव लौटा दो,
हे नगर, मुझे मेरा गाँव लौटा दो।

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