तू अक्षर बन जा मेरा, मैं कविता लिखता जाऊँ,
नज़्म लिखूँ, ग़ज़ल लिखूँ, रुबाई लिखता जाऊँ।
ग़ालिब का शेर कहूँ या गीत कहूँ साहिर का,
बच्चन की मधुशाला सा तेरी ओर खिंचता जाऊँ।
दिनकर की कविता का तेज तेरे नाम कर दूँ
गुलजार की त्रिवेणी सा मैं तुझमें रिसता जाऊँ।
तू तस्वीर में क़ैद है जाने कितनी बीती सदियों से
हक़ीक़त में अब आ जा, मैं तुझसे लिपटा जाऊँ।
तेरे लिए ही सीखी 'कुमार' ने शेर - ओ - शायरी,
तू एहसास बन जा मेरा, मैं ज़ज्बात लिखता जाऊँ।
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