याद है वो जगह
जहां हम पहली बार मिले थे
गवाही पेड़ो से ले लो..
अज़नबी थे,अकेले थे,थोड़ा नर्वस थे
गवाही सुरक्षाकर्मी से ले लो..
कुछ ही बातें हो सकी थी तुमसे
डर था कि तुम्हें कोई और ना देख ले
गवाही फूलों से ले लो...
याद है जहां हम बैठकर बात किया करते थे,
आंख मिचौली किया करते थे
गवाही उन हरी घास से ले लो..
याद है तुम्हें,हम उन राहों पे मिला करते थे
घंटो टहला करते थे,जहां तुम्हें कोई देख ना ले
गवाही डूबते हुए सूरज से ले लो..
आज तीन साल गुज़र गये,हमें यूं बिछड़े हुए
गवाही,एक-दूसरे से ले लो..
क्या करेंगे गवाही लेकर
गवाही तो होती रहेगी,
चलो,एक बार,फिर मिले...
फूल,पेड़,घास,वक्त,सूरज सबको एक साथ मिलाले,
फिर से,जीवन को यूं ही पहले की तरह जीये,
ज़िंदगी हरी नहीं, रंगीन बना डाले..
याद है वो जगह
जहां हम पहली बार मिले थे...!
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