बचपन की मेरी वो गली कहीं खो गई है,
खेलती थी वो आंगन मेरा कहीं खो गया है।
नहीं बुझती है प्यास फ्रिज के पानी से क्यूँकि
रसोई में अब वो पानी का मटका नहीं है।
आज अब आंसू ही नहीं आते आंखो में क्यूँकि,
मेरी "माँ" का आज वो आंचल खो गया है।
अब थोड़ी दूर चलने पर थक जाती हूं क्यूँकि,
जो पैदल चलते थे एक किलोमीटर वो पहिया खो गया है।
छत्तीस तरह के व्यंजन अब नहीं अच्छे लगते क्यूँकि,
मां और बहन का हाथ की वो घी और रोटी खो गई है।
नहीं मिटा सकती लिखे हुए इस काग़ज़ को क्यूँकि,
वो पेन दफ्तर रबर सब खो गए हैं।
हजारों यार हैं व्हाट्सएप और फेसबुक पर मगर,
लंगोटिया यार अब कहीं खो गए हैं।
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