गैरो से मिले गम थे जो अपनों में वो बाँट बैठें अपनों के हक़ की खुशिया वो गैरों में लूटा बैठें नाकामियो में साथ थे जिनके वो शोहरतो में भुला बैठें अपनों से करने वाली बातें भी वो आज महफ़िलों में सुना बैठें
तब तक मैं अपना हर फ़र्ज़ निभाउंगी।। मैं अपना धर्म निभाउंगी ना आने दूँगी तुम्हारी ज़िन्दगी में मुसीबत कभी ।। ना आने दूँगी गम का तूफान कभी तुम्हारी खुशी के लिए हर गम खुशी से सह जाउंगी। मगर तुम्हारा साथ निभाउंगी जब तक ये ज़िन्दगी चलती है जब तक साँसे चलती हैं
पूछते हैं वो कोई गम तो नहीं, हमनें भी कह दिया कोई गम नहीं है। बदले हो तुम बदला है नजरिया, बदल गया मौसम पर हम वही हैं। खुश रहो अपनीं दुनियाँ में, गर कुछ कसूर नहीं तुम्हारा नवनीत... "अपनी जगह पर" तुम सही हो तो, अपनी जगह पर हम सही हैं।