शक्ल दिखाने आए हो, या बात बढ़ाने आए हो,
इतने बरसों के बाद सनम, क्यों मुझे मनाने आए हो,
जो बीत गई वो बात गई, चंदा तारों की रात गई,
हम भूल गए जिन बातों को, क्यों याद दिलाने आए हो।
बरसों बरसीं मेरी आँखें, तब जाकर ग़म की आग बुझी,
अब मरने दो इन शोलों को, क्यों और जलाने आए हो।
क़िस्तों में मेरी जान गई, हस्ती तो कब की भस्म हुई,
बस राख़ बची है ख़ाबों की, जो तुम सुलगाने आए हो।
कुछ ऐसे दिल पर वार हुए, धड़कन रहते बेजान हुआ,
अब मुर्दादिल को सोने दो, क्यों आस जगाने आए हो।
सुनते जाओ जब आए हो, न मैं हूँ 'वो', न तुम 'तुम' हो
इस वक़्त से हम-तुम बदल गए, तुम वक़्त गवाँने आए हो।
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