QUOTES ON #गजल

#गजल quotes

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4 JUL 2019 AT 0:20

हाथ चलते हो तब तक कमाना चाहिए,
यूंही नहीं सामने किसी के फैलाना चाहिए।
दरवाज़ा चाहे खुला हो अजनबी घर का,
औरत हो अकेली तो खटखटाना चाहिए।
मरहम और नमक दोनों मिलते हैं शहर में,
जख्म अपना सोच समझ के दिखाना चाहिए।
बेटी को पहना देते हो संस्कारों के गहने,
मशविरा है कि बेटे को भी समझाना चाहिए।
भूल शामिल है आदमियत की हस्ती में हमेशा,
हर गलती को कभी न कभी भूल जाना चाहिए।
देखने हो गर अपनेपन के दिखावटी प्रिज्म,
रिश्तेदारों को गम अपना बताना चाहिए ।
शौक रखो अगर जेब इजाजत दे तुम्हारी,
पहले जिस्म पूरा चद्दर के अंदर समाना चाहिए।

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सुनो न...
इश्क़ वालों ने जी भरकर लूटा हमें
मेरे हर इक जज़्बात पर..

फिर भी मैं फ़क़त लिखती रहूंगी
इश्क़-ए-ताल्लुक़ात पर..

करते रहे गुरूर हम
इश्क़ में जिनके साथ का...

वही छोड़ गए हमें
मेरे बुरे वक्त और हालात पर..
❤️❤️❤️

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28 AUG 2020 AT 17:33

कुछ किताबों के पन्नों में तू शब्द होगा,
संगीत की हर धुन-राग में तू नज्म होगा!

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4 NOV 2018 AT 19:32

किसी दिल के लिये यारों कि महफ़िल छोड़ आये हैं,
सफर की धुन में खोये हैं कि मंज़िल छोड़ आये हैं।

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26 SEP 2018 AT 12:30

कभी प्यार की रेशमी सी सहर हो,
कभी याद की सुरमई शाम हो तुम।

जिसे हर पहर मैं लबों से लगाऊँ,
फ़लक से छलकता हुआ जाम हो तुम।

मिरे शे'र में अक्स हो तुम ख़ुदा का,
ग़ज़ल में पुकारा हुआ नाम हो तुम।

दवा हो मिरे ज़ख्म की तुम, मिरी जाँ,
मिला दर्द में वो ही आराम हो तुम।

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20 JUN 2020 AT 7:59

किसी को क्या बतायें, किधर ये कदम निकल पड़ता है ।
जब भी याद आती है उनकी, ये पागल मचल पड़ता है ।
बहुत शोर मचाता रहता है ये दिल, यूँ धड़क धड़क कर
कोई समझाओ इसे कि, उनकी याद में खलल पड़ता है।।

इस उलझी हुई दास्तां को, कुछ यूँ सरल करते हैं।
बंजर पड़ी इस जमीं पे, अब कुछ फसल करते हैं।
कहीं छूट गयी थी अधूरी, जिंदगी की भागदौड़ में
आओ साथ मिलकर, मुकम्मल वो ग़ज़ल करते हैं।

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22 SEP 2018 AT 10:56

खिलो ऐसे कि फूलों की तरह फैलो,
उड़ो ऐसे कि तुम आकाश बन जाओ।

मिरा कोई नहीं है इस जहाँ में , तुम,
चले आओ मिरी फिर आस बन जाओ।

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2 JUN 2021 AT 0:45

गुजार लेने दो ये सारी शब–ए–गम हमे किसी तरह
कि फिर सहर में मुस्कुराना है हमे किसी तरह

कब तक छुपाए रखे ये गैरत–ए– जज़्बात खुद में
उनसे कहो अपना कीमती वक्त जरा दे दे किसी तरह

कोई साज कोई धुन कोई राग नहीं मेरे ख्यालों में
हम तो नग्मा–ए–बे–साज–ओ–सदा सुनते है किसी तरह

तेरे मशाम–ए–जा की खुसबू मेरे जहन में आज भी है
अब रोज उसे भुलाने की कोशिश करते है किसी तरह

कोई भी वजह हो हमारे मोहब्ब्त में तेरे नफ़रत की
हम खुद को ही नाकाम बता कर जीते है किसी तरह

शायद शायरा काबिल ही ना हो उसके अब्र–ए–ताज की
पर निगाह–ए–सौक में उसे टूटना ही है किसी तरह

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तुम खुदी ही इश्क़ में बारात लेकर आ गये,
कब कहा तुम तो मगर सौगात लेकर आ गये!!

फ़र्क मालूमात करते इश्क़ के बाज़ार में,
अक्स मेरा देख काली रात लेकर आ गये!!

पैरहन मानिंद आशिक़ रोज़ बदले जा रहे,
दौर में बीमार वो ज़ज्वात लेकर आ गये!!

शाम को ग़ुल और सुबहो ख़ार से इज़हार हो,
बेबफाई की मगर बरसात लेकर आ गये!!

अक्स दिल पर जाइए मत कारनामे देखिए,
वो कहें फिर उलझनों की बात लेकर आ गये!!

फिल्म टीवी रोज़ उकसाते फरेबी दौर में 'नीत',
ज़िन्दगी के वास्ते इक घात लेकर आ गये!!

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21 SEP 2018 AT 15:30

तू भी मुझमें जगती है,
मैं भी तुझमें सोता हूँ।

डूबा हूँ ना समझो तुम,
सूरज हूँ फिर उगता हूँ।

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