किसी को क्या बतायें, किधर ये कदम निकल पड़ता है ।
जब भी याद आती है उनकी, ये पागल मचल पड़ता है ।
बहुत शोर मचाता रहता है ये दिल, यूँ धड़क धड़क कर
कोई समझाओ इसे कि, उनकी याद में खलल पड़ता है।।
इस उलझी हुई दास्तां को, कुछ यूँ सरल करते हैं।
बंजर पड़ी इस जमीं पे, अब कुछ फसल करते हैं।
कहीं छूट गयी थी अधूरी, जिंदगी की भागदौड़ में
आओ साथ मिलकर, मुकम्मल वो ग़ज़ल करते हैं।
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