ए अर्श को छूते हुए,
ख़ुशहाल दरख़्तों,
इस राह से जो भी गुज़रा होगा,
तुमने ज़रूर देखा होगा।
मै खोज रहीं हूँ..
अपना खोया हुआ हमदर्द यहाँ,
तुमने अगर देखा हो,तो...
कोई इशारा दे दो।
इस मिट्टी की भीनी ख़ुशबू में,
इन लहराती हुई डालियों में,
हौले-हौले से बहती हुई हवाओं में,
मुझे महसूस होती है,उसकी मौजूदगी,
जैसे अभी आगे बढ़कर,
वो मेरा हाथ थाम लेगा,
और हम गुनगुनाते हुए,
कदम से कदम मिलाकर,
अपनी मंज़िल की तरफ चल पड़ेंगे..
इन मायूस आँखों को,
उनकी रौनक...
इन खाली हाथों को...
उसके सम्बल के साथ होने का,
सुकून दे दो।।
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