फिजां में पसरा है हर सिम्त, एक सन्नाटा
फिर भी आहट सी कोई आती है
कोई तो आसपास रहता है
जिसकी सूरत ना नजर आती है...
हो भला भूत या जिन्नात,मेरा खैरख्वाह तो है
अब तो मेरे दिल को भी,उसी की चाह तो है
क्यों मेरे सामने नहीं आता
उसकी मौजूदगी बहुत सताती है ....
साथ चलता है मेरे संग,मेरे साए सा
मुझको देता है सुकून मेरे ही हमसाये सा
मैं भला कैसे भुला दूं उसके हसीन साये को
अब तो मुझको भी, उसकी याद बहुत आती है
वो भले सामने नहीं आए,मुझ को फर्क नहीं पड़ता
मैं तो चाहूं कि रहे ,मुश्किलों से मेरी लड़ता
उसका एहसास मुझे रहता है हर एक पल
मुझको तब ही बुरी नजर, न छू भी पाती है.....
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