जिंदगी तेरे खेल में, बार बार मैं रोया हूं।
अपनी ही प्यास बुझाने, चौधार रोया हूं॥
मंजिल जो थी मेरी, कहीं रह गयी है पीछे।
मेहनत की गाड़ी में, मैं दिन रात सोया हूं॥
बैठा हूं उम्मीद में, मिट जायेंगे किसी दिन।
अतित के सब दाग, ख्वाबों में भिगोया हूं॥
लगता है सबको, कि छिप रहा हूं मैं तुझसे।
क्या बताऊं उन्हे, तेरी ही जाल में खोया हूं॥
कामयाबी मेरी बहुत मामूली लगेगी लेकिन,
न जाने कितने ठुकराए मौके पिरोया हूं॥
अब तो मीठे फलों की आश छोड दो 'हसित'।
मिले है जो मेहनत से, वही बीज बोया हूं॥
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