खुशियों की चाह में
ग़मो के साये से गुजर जाती हूँ
और से मिलने की चाह में
खुद को भूल जाती हूँ
ग़मो को मुट्ठी में ,समेटने की चाह में
कुछ बुंदे फिर से खुशियोँ की ले आती हूँ
ज़िन्दगी के कई रंगो में घुलजाने की चाह में
कुछ रंग प्यार के भी समेट लेती हूँ..!!
खुद को खुश रखने की चाह में
दुश्मनों से भी यारी निभा लेती हूँ...!!
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