खुद को तकलीफ देकर तेज धूप में जाना बंद हो,
जो छत पर रोज तेरा बालों का यूँ सुखाना बंद हो|
तेरी झलक को खड़ा रहता गली के नुक्कड़ पर
हो आसमाँ में चाँद, पर अमावस की रात बंद हो!
घूरती है लोगो की बदकार निगाहें सरेराह तुमको
नहीं है बर्दाश्त, तेरे दुपट्टे की गुस्ताखियां बंद हो!
एक शिकायत है तुम्हारी सहेलियों की, समझा दो,
नश्तर सी चुभती, देख मुझे उनका मुस्कराना बंद हो!
साइकिल की चेन तेरे घर के सामने ही बिगड़ती है,
करना है दीदार, खिड़की का परदा गिराना बंद हो!
काफी हो चुका लिख लिख के यूँ मोहब्बत जताना,
रूबरु मिलो, किताबों में चिट्ठियां रखना अब बंद हो!
आखरी वक़्त तेरा फैसला झटके से मुल्तवी करना,
"राज" बाबा हैं घर पे अभी...तेरा यह बहाना बंद हो!
_राज सोनी
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