QUOTES ON #खिज़ा

#खिज़ा quotes

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1 MAY 2018 AT 10:17

पत्ता पत्ता झड़ रहे हैं, दरख़्त-ए-ज़िन्दगी से पल,
मौसम-ए-खिज़ा में उम्मीद-ए-साया ना कर बेकल..

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11 JUN 2018 AT 9:23

ज़र्द पत्ते हैं ये जो तुम जिनको दोस्त कहते हो
हवाएँ तय करेंगी के कब ये उड़ के किधर जाएँगे

कूद कर 'धम्म' से सड़क पर, मुँह फेर कर चल देंगे
एक ज़रा सा ज़िन्दगी में जो आँधीयों के दौर आएँगे

तुम से मतलब है जब तक इन्हें, तब तक ये हरियाएँगे
जवाँ मौसम में ये, तेरी हर बात पर झूमेंगे, इठलाएँगे

मौसम ए खिज़ा जब भी तेरे दर पर दस्तक देगा
रंग बदले बदले से जनाब, इनके तब नज़र आएँगे

तू करेगा लाख मिन्नतें इनसे मगर फिर ये न समझेंगे
ग़म ए दौरां की मजबूरियाँ भी सब तुझको गिनाएँगे

छोड़ कर तड़पता हुआ तुझे यूँ ही कहीं चल देंगे
सूखे जज़्बात हैं, क्या समझता है, हौसला दिखाएँगे

ज़र्द पत्ते हैं ये जो तुम जिनको दोस्त कहते हो..

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14 AUG 2017 AT 17:18

इक उम्र थी जो गुजरी थी प्यार करते करते
रंग-ए-हिना भी उड़ गया इंतेज़ार करते करते

इक चांद था जो चमकता था अकेले रात भर
सितारे थक गए सब अंधेरा पार करते करते

इक शख्श था जो न रुकता था न झुकता था
शमशीर वाले सब मर गए वार करते करते

इक इश्क़ था जो कभी मुकम्मल ही न हुआ
बहोत देर कर दी दोनों ने इज़हार करते करते

इक शादाब शजर था जो अब दरख़्त हो गया
खिज़ा ने लूट लिया उसको बहार करते करते

इक उम्र थी, मुफ़लिसी में हंसते गुजारी उसने
फुट कर रोया बच्चों से बातें चार करते करते

इक लज़्ज़त-ए-ग़म था जो बढ़ता ही गया था
वो ख़ुद दवा लेने लगा मुझे बीमार करते करते

इक खंज़र था उसे लहू पी के बड़ा होना था
शहर साफ हो गए उसे तलवार करते करते

इक लख्त-ए-ज़िगर था ग़ज़ब ज़िद थी उसकी
मैं थक गया दिल के टुकड़े हज़ार करते करते

इक नींव थी कुछ अपनों ने ही पत्थर रखे थे
मैं बूढ़ा हो गया उसको दीवार करते करते।।

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3 JUL 2017 AT 22:08

आ चल चाक-ए-ज़िगर को देखते हैं
इक निगाह उस खंज़र को देखते हैं

महफ़िल है बस इक शख़्स के नाम
दिखा जो वो तो जी भर के देखते हैं

शहर का शहर ज़ख्मी नज़र आता है
आ हम भी वो क़ातिल नज़र देखते हैं

खिज़ा को छुआ तो बहार गाने लगी है
ऐसा है तो हम भी उसे छूकर देखते हैं

ज़लज़ला थम गया आने की ख़बर से
क्या कमाल है, उसका कहर देखते हैं

दिल भी ठहर के बोला थोड़ा सब्र कर
सामने से वो लख्त-ए-ज़िगर देखते हैं

के ज़माना कायल है मेरी फनकारी का
आ तुझ पे भी अपना असर देखते हैं।।

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29 MAY 2019 AT 10:19

सुनो !
कभी सुना हैं शाख का रूदन , जो खिज़ा में
पीले पत्तो के टूट कर बिखरने से हो

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जवाब का इंतज़ार है सुना तुमने,
ये दिल बेकरार है सुना तुमने..!

खिज़ा मिली है मेरे हिस्से क्यों?
महफिलों में बहार है सुना तुमने.!

मरते दम तक तुम्हे न भूलेंगे,
ये मेरा प्यार है सुना तुमने..!

स्वतंत्र,रोकें तो कैसे खुद को हम?
दिल पे ना इख़्तियार है सुना तुमने.!

ये सुर्ख लाली तुम्हारे होंठो की,
खून-ऐ-दिल का निखार है सुना तुमने!

सिद्धार्थ मिश्र

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6 MAR 2017 AT 23:22


कई बार दिल ने कहा
दिल की बात कह दूँ
मगर हर जज़्बात जाताना ज़रूरी तो नही
कितनी भी रूठी हो
तक़दीर हमसे
बदकिस्मत कहलाना ज़रूरी तो नही
खामियाँ होंगी यकीनन मुझमे
ख़ज़ालत से खामोश रह जाना जरूरी तो नहीं
अक्सर खिज़ा के मौसम में पत्तियां अदम हो जाती हैं
मगर इनका खुश्क होना भी कितना लाजवाब है
इनका कोई वजूद ना हो ये ज़रूरी तो नही

बिलकुल ऐसे ही ज़िन्दगी रंगीन कर जाओगे तुम
मेरा ये सोचना गलत तो नही




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23 JUL 2021 AT 7:16

11212 11212 11212 11212
तेरे साथ में ही बहार थी मुझे ख़ुद खिज़ा ये बता गई
थी उरूज़ पे, जो भी याद-ए-इश्क़ ये जवाल में उसे खा गई।1

कभी सुन सका न मेरी सदा, तेरे वास्ते मेरी है वफ़ा
किया अनसुना मेरा फ़लसफ़ा, ये दुहाई मुझको सुना गई।2

मुझे ये बता मिला क्या तुझे, ये भी सोच तूने ये क्या किया
दिया तोड़ तूने ये दिल मेरा, तेरी बेवफ़ाई जता गई।3

बड़ी बेरहम थीं हक़ीक़तें उन्हें क्या था हक़ जो कहा मुझे
न तू देखना कभी ख़्वाब तक, मुझे नींद से ही लड़ा गई।4

है "रिया" ख़याल किसे मेरा, ये मेरी उदासी ही साथ है
हुई तन्हा जब कभी मैं अगर, तो ग़ज़ल तेरी ही वो गा गई।5

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30 APR 2023 AT 7:17

212 12 212 12
रास्ते जुदा हो गए तो क्या
मंज़िलों ने फिर से मिला दिया 1

आपने इधर क्यों दिया न ध्यान
मैं तो आपको देखता रहा 2

आप आ गए फूल हैं खिले
इस बहार का इंतज़ार था 3

रह गई थी कुछ मिसरों में कमी
रब्त बन गया शेर हो गया 4

वक़्त आपने तो दिया है ख़ूब
आपका "रिया" हक़ करे अदा 5

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फितरत में ही जिनकी,आवारगी हो साहिब,,
वो हवाएं अक्सर ,खिज़ां के गुल खिलाती है,,

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