प्रतियोगिता जश्न-ए-इश्क। कविता- शीर्षक ( खारा पानी)
मन का प्यासा पंछी व्याकुल हो चतुर्दिक दौड़ रहा तपते रेगिस्तान में कुछ कतरा पानी खोज रहा छलकी हुई आँखो से वो बदलाव जगत का देख रहा अपने ही खारे आँसू से सूखे अधरों को सींच रहा जब कोई खिलौना टूट गया या मां से बच्चा रूठ गया बचपन के साथी बिछड़ गये या हम जीवन में पिछड़ गये कोई स्वप्न सुहाना टूट गया या साथ मीत का छूट गया सच समझा जिसको झूठ गया कोई छाला दिल का फूट गया पलकों पर बूंदें छलक गई कहलायी आँखो का पानी कोई कहे आँख का आँसू हैं कोई कहता खारा पानी