देख कर आईना तेरा खयाल कैसा है,
तू अब तू नहीं, मिरे बीते हादसे सा है,
फ़िक्र है तेरी, ये गलतफहमी न रखना,
बात ये वक्त, और बीच मेरे, जफ़ा सा है,
तिरे तग़ाफ़ुल पर, मिरा यूँ मुस्करा देना
मिज़ाज-ए-दर्द में, इतना ही राब्ता सा है,
ऐतबार किस पर, और इंतज़ार कैसा हो
मरासिम निभाना, अब लगता झूठ सा है,
ख़लिश चुभती है ताज़ीर सी 'ऐ दीप'
तू इश्क़ नहीं, ज़हन में इक ख़ता सा है !
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