इस भरे शहर में, मेरा तो गम गुसार नहीं,
मेरा दर्द खरीदे ऐसा कोई खरीददार नहीं.
मिले तो, तमाम खुशियां खरीद लेते,
खुशियां बिके, ऐसा तो यहां बाज़ार नहीं.
रब ने गैर को देने में कोई कमी न कि,
बस जहां मे मेरा ही कोई तलबगार नहीं.
धोखा, फरेब, जालसाजी की दुनिया,
बस किसी की आंख में सच्चा प्यार नहीं.
साथ देगे वहां तक, आसमां जहां तक,
पर मेरे साथ चलने को कोई तैयार नहीं.
ढलती उम्र में क्या करे इश्क़ की चाह,
दर ए कज़ा पर किसी का इंतज़ार नहीं.
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