फसल हैं मोहब्बत की चाहतों की बारिश लाजिमी है डर तो उन खरपतवार से हैं जो वेबजह उग आते हैं कभी बेहिसाब सी परवाह शक को जन्म दे जाती हैं कभी-कभी की गई बेपरवाही एक दरार बीच में ले आती हैं सोचो ...क्या रिश्तें इतने मुश्किल है, निभाना ईर्ष्या अहम् से परे एक खूबसूरत जहां हैं किसी और का नही ये हमारे ख्वाबों का आस्माँ है इतनी सी बात तुम क्यों समझ नही पाते हो।
फसल छोटी रह गयी,खरपतवार बड़े हो गए, ईमानदारों के मुकाबले, गद्दार खड़े हो गए !! यूँ तो ना थी किसी से कोई नाराजगी, बात जब जमीर पर आई तो हजारो झगड़े हो गये रंजिशो का दौर भी खत्म करने वाला था मै, पर तेरी फरेबी बातो से लफड़े कुछ और हो गये 🎯🎯🎯
संबंधों की खेती में खरपतवार पैदा हो ही जाती है। एक बार बीज बोकर भूल जाने वाला कृषक फ़सल बर्बाद कर बैठता है। अतः संबंध में संदेह और भ्रांति खरपतवार होती हैं जिसे समझदारी के खुरपे से नासमझी के खेत में से निकाल बाहर करना चाहिए।
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