हमें आज कल की फिकर फिर से होने लगी, था लकीरों में जिसकी वो हमें आज खोने लगी। थी खफा वो हमसे हफ्तों से जाने किस बात पर, मैं मनाने गया और वो रोने लगी। -ए.के.शुक्ला(अपना है!)
इन्तज़ार मैं करूंगी तुम बस एक सिला दो खफा गर मैं हो जाऊं तो न तुम्हें कोई गिला हो हमारे बीच जीवन भर जो चलें ऐसा सिलसिला हो दुआ है मेरी कि किस्मत में तुम्हें मुझ जैसा न कोई मिला हो