हृदय के रसातल
पर आज मैंने
ज्वलंत लौ पर.....
ज्वलंत शब्द भावों
रूपी घी,तेल,मिर्च मसालों
को..तपने नहीं रखा
चिटचिट की चपल
कर्कश आवाज़
हृदय की दीवारों को जला
कर खाक करती
"क्रोधाग्नि" में.....
पर आज तो क्षमा पर्व है
जो कर्म का मर्म है
नित्य दैनिक जीवंत आत्मा में
सो.....धारण किया
पर्व और धर्म को!!
23.8.2020
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