रास्ते चौराहे में सब ओर से हैं
चलो.. "ज़िन्दगी" का रुख मोड़ते हैं
"माँझी".. पतवार तेरे हाथों में है
दिल चल.. कश्ती को तूफानों में छोड़ते हैं,
कठोर ही सही राह ख़्वाबों की
यह पत्थर.. धीरे-धीरे तोड़ते हैं,
माना.. ऊंची डगर हफां देगी
पऱ पांव हैं के मैदानों में दौड़ते हैं,
हम "शून्य"... को तन्हा क्यूँ रहने दें
उसमें क्यूँ ना.. एक औऱ अंक जोड़ते हैं!!
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