भरा पड़ा है गम, है यह ग़मगीन ज़िन्दगी
जऱा जऱा सा प्यार है, कहीं-कहीं ज़िन्दगी,
ख़्वाईश औऱ क्या थी सिवा तेरे इन आँखों में
थोड़ा सा आसमां था थोड़ी सी जमीं ज़िन्दगी,
यूँ तो घुल-मिल के रहते हैं हम खुशियों से,
बस ख़लती है क़भी-क़भी तेरी कमी ज़िन्दगी,
रोज़ आहट होती है दिल के दरीचे से
रोज़ तेरे आने का होता है मुझे यकीं ज़िन्दगी,
यूँ तो सिवा तेरे भी चलती हैं यह साँसें मेरी
ज़िन्दगी है भी यह पऱ यह है भी तो नहीं ज़िन्दगी!
-