निरपेक्ष समर्पण क्रिया में लिप्त भीरु औ' आक्रांत मन को निश्चल प्रेम छींटों से शीतल कर जीवनपथ के दुर्गम रस्तों पर गतिशील रहने की प्रेरणा दे ओझल हो आडंबर से ढाल बनकर जीते हैं हाँ बाक़ी हैं कृष्ण सुदामा सी "मित्रताएँ" आज भी
तू मेरे श्याम कि मुरली सा है। तू तो बिल्कुल मीरा सा है। सबरी भी है तू तो तू बिल्कुल सुदामा सा है। है मन तू कितना चंचल है। लेकिन तू आज भी कुछ तो अपना सा है।
अगर सुदामा जी किस्मत के भरोसे ही बैठे रहते, तो वह कभी दो लोको के स्वामी नहीं बन पाते, उनकी सच्ची प्रभु भक्ति से प्रसन्न होकर ही प्रभु ने उन्हें, भेंट स्वरूप दो लोगों का स्वामी बना दिया।।
मैत्री हे नात फारच वेगळं नात असत... एक पवित्र नात... जस कृष्ण आणि सुदामा च.... जस शिवबा आणि तानाजी च... एक अस नात जे आपण आयुष्यभर नाही विसरू शकत.... मैत्री हे नात फारच वेगळं नात असत....
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