लड़कि है तू मोम की गुड़िया नही हा माना कि; जरा सी चोट पर तेरी आह निकल जाती है रो रो कर अपने आखें सूजाती है खूब नखरे भी दिखाती है
हा माना कि; तेरा शरिर थोड़ा सा कमजोर है पर तू मानसिकता से कमजोर नही
हाँ चल उठ अब इतिहास बदल अपने जिम्मेदारीयों को उठा उसे यूँ ना कृत्रिम बेवसियों मे छिपा चाहे जिम्मेदारी माँ-बाप की हो या स्वरचनात्मक भविष्य की जिम्मेदारी हो उसमे भी तू अपना जोर लगा समाज के कटरपंथी धारनाओं पर अपने सफलता और उज्वलकर्मों से रोक लगा
हाँ तू लड़की है पर मोम की गूड़िया नही घूंघट की चादर से जिम्मेदारीयों की लौह से खूद को अब और ना छिपा अपने अस्तित्व को मजबूत बना अपने कर्मों को बखूवी निभा लोक-कथाओं को अब तू मिथ्या बना हाँ खूद को मजबूत बना, हाँ अब खूद को यूँ ना मोम बना kavita
अब कृत्रिम प्रकाश से रौशन अब l सांध्य दीप जलते कहाँ अब ll बुजुर्गो की तजरबा सुनते कब l
तहजीब शालीनता सीखते कैसे अब l श्रेष्ठ शील नमन नीत मिलते कैसे अब l आदत लिन सर्वस्व मोबाइल जैसे अब l घर घर नहीं रहे अब l
चंदा मामा की कहानी होते कहाँ अब l दादी नानी की कहानी कैसे सुने जाये अब l सब मिलते मोबाइल पर आधुनिक युग अब l टीवी प्रसारण पर मिलते सब घर घर नहीं रहे अब l
दास्तान आज की तनाव तृष्णा मति होते अवरोध अब l नीत तृष्णा मे बंधु से होते विवाद अब l कृति सच कि गीता ज्ञान शांति मार्ग सरल दूर अब l धन अपार मनहर रूप की प्रयास अब l घर घर नहीं रहे अब l
प्रेम एक गहन विषय है जिस पर विभिन्न प्रकार से शोध हुए होते रहते हैं पर अधिकांशतः अगर हम इसकी पुष्टि स्पष्टीकरण करें तो लोग हमेशा इसे अधूरा ही छोड़ जाते हैं। इसकी वैचारिक व व्यावहारिक उपलब्धता बहुत कम लोगों में ही मालूम होती दिखती है। और जिसे आप देख रहे हैं वह सिर्फ एक कृत्रिम बनावट है जो एक समय के बाद स्थानांतरित होती रहती है ।✍️✍️
जो अप्रतिम था...! मेरे लिए ख़ास पर तेरे लिए अंतिम था तेरी होकर गर्वित थी कि तू मेरा हाक़िम था जो भी था अब नहीं, क्योंकि सम्वेदनाओं का मेल कृत्रिम था। जया सिंह 🌺
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