कुछ टूटा टूटा लगता हूँ,
कुछ तन्हा तन्हा लगता हूँ,,
पर क्यों आती हो ख्वाबों में,
अब मैं क्या तेरा लगता हूँ,
दूर दूर तक राह नही,,
इक अंधा सहरा लगता हूँ,
(सहरा - जंगल)
हर इक सपना टूटा जबसे,
खुद सपना झूठा लगता हूँ,
कभी झील सा गहरा होता है,
अब कुआं अंधा लगता हूँ,
देख आईना भी चीख़ उठा,
अब मै कैसा लगता हूँ,
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