मेरा 2 साल का बेटा किताबों के बारे में कुछ जानता तो नही लेकिन इतना जरुर समझता है की कोई जरुरी चीज है, जिसे संभाल कर रखा जाता है। दिन में एक बार किताबों के नजदीक बैठता जरुर है।
कुछ लोगों ने मुझसे पूछा तुम्हारा "किताबों" से क्या "नाता" है, मैं बोली बस इतना सा "नाता" है की जो मेरे "अंदर चलता" है वो "लोगों" में बहुत "कम", "किताबों" की "पंक्तियों" में "अधिक" मिल पाता है..!! (:--स्तुति)
ख़ुद को इतना रहस्यमय बनाओ हर कोई जानना चाहे! ख़ुद को ऐसी किताब बनाओ पढ़े तो कोई भी पर समझ ना पाए! जो मिले तुमसे दुबारा मिलने को मजबुर हो जाए! जो कर ले दीदार तुम्हारा वो रातो को सो ना पाए! लब्जो में वो नज़ाकत हो कि वो फ़िर उसी लम्हे के इंतज़ार में ही खोया रह जाए!! ख़ुद को खुली किताब ना बनाओ की कोई भी पढ़े और रद्दी के भाव बेच के चला जाए!
यादों की सरजमी ं पर तेरा धुंधला सा अक्स, वीरान ज़िंदगी को रौशनी से भर जाता है, पुरानी किताबों में छुपे सूखे गुलाब की तरह तसव्वुर तेरा सहरा-ए-दिल महका जाता है !