संवेदनाएं....
मेरे अस्तित्व से निर्गत
क्या पहुंच पाती है तुम तक,
अश्रुपूरित मेरे नयन की वेदना
क्या झकझोरते हैं
तुम्हारे हृदय को,
गहरा सूनापन मेरे जीवन का
क्या महसूस कर पाते हो तुम,
मेरा प्रत्येक क्षण ढूंढता है तुममें
प्रेम की बूंदें,
जो भिगो दें मेरा अंत:करण,
मेरे आंचल के एक सिरे को
थामे तुम्हारी उंगलियां,
और धीमा सा स्पर्श पाने की चाह,
आज भी विचलित करती हैं,
मेरी तुमसे आशा
और अतृप्त पिपासा,
मुझे प्रतिपल सीमित करती हैं,
अनुराग आश्वस्त करता है
और आस जीवित करती है....
- दीप शिखा
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