उफ्फ सुलझी, उलझी थोड़ी सिमट गई,
हौले हौले जीस्त गुजरी, बीती, कट गई.
जिम्मेदारी ने यू सिखाई दुनियादारी,
फिर नादानी की धुंध आंखों से हट गई.
अपने हिस्से में क्या आया पता नहीं,
जिंदगी तो सारी, किस्तों में ही बंट गई.
जाने और क्या चाहती है अब मुझसे,
सारी ख्वाइशे, दिल में, ही तो, डट गई.
वक़्त के आगे किसका ज़ोर चला है,
मुकद्दर की बाजी देखते ही पलट गई.
किस मोड़ ले जाएगा यादों का कारवां,
तमाम यादें, मेरे सीने से ही लिपट गई.
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