✍️"घर की कामकाजी बहू बेटियों को समर्पित"🍇..✍️
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बेहतर को बेहतरीन बनाने में कसर ज़रा न तुमने छोड़ी।
कष्टों को कर बेअसर, खुशियों को समां में तुमने जोड़ी।
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खिल जो गए वो गुल उठ गए, सब सोए बीमार पड़े थे।
उठते ही लड़ बैठे कष्टों से, वहीं बगल में हथियार पड़े थे।
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आप सभी अच्छी हैं भली हैं तभी तो घर चला है रेल जैसे।
ज़रा भी बिगड़ना उतार देती है रेल पटरी से कर ऐसे तैसे।
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