कल भी बस उम्मीद ही थी और आज भी बस उम्मीद ही है
बेहतर समाज और व्यवस्था होगी ये इक खोखली तस्वीर ही है
सिर्फ सियासत और राजनीति में उलझा ये देश रहा है
मानवता को शर्मसार करता रोज़ इक घिनोना स्वांग रचा है
कभी हर रोज़ कहीं कोई युवा नशे में डूबा मिलेगा,
कहीं हर घंटे किसी लड़की को दामिनी/निर्भया का नाम मिलेगा
कभी किसानों की लाचारी किसी को समझ ना आएगी
तो कहीं भ्रष्टाचारियों के हाथों आम आदमी की ज़िंदगी पे बन आएगी
कुछ दिन सामाजिक मीडिया व समाचारों में दिखावे की मुहिम चलेगी
कहीं किसी जगह आक्रोश में कुछ दिन मोमबत्तियाँ जलेंगी
फिर होगा कुछ यूँ की हर कोई इन्हें किस्सा समझ भूल जाएगा
न्याय दिलाने वाले ही जब अन्याय करे तो मानवता कौन बचाएगा
संस्कारों में कमी है या दिखावे ने आधुनिकता के नाम का चोगा ओढ़ा है
धुंए में उड़ती ज़िन्दगी और मन में पलती हवस ने किसे कहाँ का छोड़ा है
काश इस देश को कुछ नए कानून और न्याय के आयाम मिल जाये
और फिर वहशी, दरिंदों से आज़ाद ये देश मेरा हिंदुस्तान बन जाये
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