हम और तुम इतनी दूरी पर आ गए नभ जितनी दूर धरा से है,
दूर तो हो गए हम तुमसे यूँ लेकिन पास भी हम तुम्हारे जरा से हैं।
पुष्प भी और काँटे भी हैं इस ह्रदय पर कदाचित सँभाले हुए हम,
जिसमें अन्तर्निहित पुष्प काँटे हुए हाँ हम उसी एक सहरा से हैं।।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)
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