इक पेड़ कट गया यहाँ धर्म के ख़ातिर
आधा गीता बन गया, आधा क़ुरान हो गया-
तुम थोड़ी सेवईयां मुझे खिला देना
मै थोड़े दियें तुम्हारे साथ जला लूंगी।
तुम थोड़ा क़ुरान मुझे पढ़ा देना
मै थोड़ी गीता तुम्हे समझा दूंगी ।
तुम थोड़ा अजान मुझे सुना देना
मै थोड़ी भजन तुम्हे गा कर सुना दूंगी।
तुम थोड़ा नमाज़ मेरे लिए पढ़ लेना,
मै थोड़ी पूजा तुम्हारे लिए कर लूंगी।।-
लोग पढ़ते होंगे
आयत क़ुरान की
या गीता का कोई श्लोक
मेरी तो निगाहों ने
जबसे पढ़े हैं
ढाई अक्षर
प्रेम के
पढ़ना छोड़ दिया मैंने
किसी और ग्रंथ को!-
पूछो तो फिर बताएं'गे वो अज़मत क़ुरान की
करते हैं रोज़ ओ शब जो तिलावत क़ुरान की-
माल-ओ-ज़र तो लुटा गया कोई ग़म नहीं ,
शुक्र है और पुख़्ता मेरा ईमान हो गया ।-
बेकार ही रक्त के दरिया बहा रहे हो
मासूम से बच्चों को मजहब सीखा रहे हो
ये ना हुकुम है ना ही रज़ा है अल्लाह की
ये तो बस तुम उसके नाम पर
जिहाद चला रहे हो
जानते भी हो खुद क़ुरान ए पाक को
या जूठी आजादी के नाम पर
कश्मीरी अवाम को जला रहे हो-
गीता,क़ुरान,ग्रंथ,बाइबल सब एक ही तो है,
इन्हें अलग बताने वालों को कागज कह दू क्या?-
शहर जलाकर क़ुरान बचाने निकले थे,
अब खुद बचने के हालात में नहीं है।-
कहाँ है ईश्वर ये तो किसी ने भी ना जाना
वेद क़ुरान हर इक़ ग्रंथों ने भी यही माना
अगर तुम्हें भी ईश्वर को है पाना तो बस
माता-पिता के चरणों में शीश अपना झुकना-
इस प्रकार हम आयतें स्पष्ट करके बयान करते है उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते है।
(पवित्र क़ुरान 30:28)-