कभी सोंचा है तुमने तुम्हारी हर राह जो मुझ तक न आती तो आख़िर कहाँ जाती? तुम्हारे बहकते क़दम जो मुझ तक न आते तो किस राह जाते? जो मैं न होती तुम्हारे जीवन में तो किस पर लुटाते यूँ अपना पागलपन सा प्यार, किस के लिये हर घड़ी तड़पते किस को यूँ चिढ़ाते; क्या सिर्फ़ इसलिए हो तुम मेरे क्योंकि हूँ मैं तुम्हारी?