QUOTES ON #क़दम

#क़दम quotes

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31 DEC 2020 AT 12:51

सोचा तो है कि 2021 में क़दम रखूँगा मैं
नक़्श-ए-पा ख़ुशियों के मिलें तो बात बने

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5 SEP 2020 AT 8:29

उड़ने के लिए पंख तो है ही नहीं,
कदम बढ़ाऊ भी तो कैसे?
सामने बड़ा खड्डा है,
और पीछे खड़ा है कोई अपना।

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2 APR 2021 AT 12:39


कभी ख़ुद को भी
बदल कर के देखो ,

मेरी जान मुझसे
मिल कर तो देखो ,

है दरिया तूफानी
क़दम लड़खड़ाये ,

मुश्किलों में भी ज़रा
सभल कर के देखो ,

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21 MAR AT 21:53

क़लम को इंतज़ार है हमारे दिल की बातें बयां करने का।
एक दौर था जब हमको शौक़ था ख़ुद को फ़ना करने का।

वो भी क्या ख़ूबसूरत वक़्त था दिल को दरिया करने का।
इश्क़ भी एक तरीक़ा हैं मेरे दोस्त ख़ुद को जवां करने का।

सोचकर दिल ख़ुश हो जाता हैं उन बातों को जब उन दिनों।
हमारे ऊपर मानो एक शुरूर चढ़ा था उनसे निका करने का।

जब उनके सिवा उनके बिना हमने एक लम्हा सोचा न था।
एक ही तलब थी इस दिल की उनको हमनवां करने का।

उस वक़्त इस इश्क़ के मारे दिल में और कोई ख़्याल न था।
इश्क़ उनसे हर वक़्त हर पल हर लम्हा हर दफ़ा करने का।

अच्छा लगता था उनकी गली में शाम को सुबह करने का।
इश्क़ की वजह न थी, मज़ा अलग था इश्क़ बेवजह करने का।

क़लम से सोहबत हुई तो अब एक वजह है जीने की "अभि"।
वरना इश्क़ ने कोई मौक़ा नहीं छोड़ा हमको मुर्दा करने का।

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21 JAN 2022 AT 8:55

क़दम रखो कहीं और
मगर पड़ते कहीं और हैं
ना जाने ज़िंदगी की
कैसी ये अजीब दौड़ है
✍️✍️

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25 MAY 2022 AT 19:06

1.सप्तपदी औ' सात वचनों
संग जो हुई थी विदाई,
वो कदम ठहरे ही रहे
आंगन की ड्योढ़ी पर
प्रतिक्षा में.... हमकदम के !

2.दौड़ते रहे क़दम उम्र भर
छूटते गये रिश्ते बेनिशां
मंजिल तक पहुंचें
सिर्फ दो कदम ... तन्हां !

3.मासूम क़दमों की ज़मीं
जो शख़्स बना था कभी,
आज उसी को बना पायदान
बेहया..बढ़ा चला क़दम
मंजिल की ओर..!

4.मन को शिकायत थी
क़दमों की नाफरमानी से
हौसलों की दीवार ढह गई
अब मातम के माहौल में
रोष किस पर जताऊं....!

5.नन्हें क़दमों ने
अभी सीखा ही था चलना
नियति की गर्जना से
क़दमों तले घिसक गई ज़मीन
हो गये बेसहारा ....क़दम!
- मधु Jhunjhunwala

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4 FEB 2021 AT 10:30

रूके रूके से हैं क़दम,
या फ़िर मैं वक्त की गिरफ़्त में हूँ।
तेरे साथ इस पल में हूँ,
या मैं हर पल तेरी सोहबत में हूँ।।

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26 APR 2017 AT 8:12

कभी सोंचा है तुमने
तुम्हारी हर राह जो
मुझ तक न आती
तो आख़िर कहाँ जाती?
तुम्हारे बहकते क़दम जो
मुझ तक न आते
तो किस राह जाते?
जो मैं न होती तुम्हारे जीवन में
तो किस पर लुटाते यूँ
अपना पागलपन सा प्यार,
किस के लिये हर घड़ी तड़पते
किस को यूँ चिढ़ाते;
क्या सिर्फ़ इसलिए हो तुम मेरे
क्योंकि हूँ मैं तुम्हारी?

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खुरदुरी फर्श भी चिकनी हो चली है,
नक़्श-ए-क़दम मिटाते-मिटाते,
एहसास कैसे भी हों ठहरते ही नहीं।

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9 NOV 2018 AT 19:44

चंद क़दम जो लड़खड़ाये, ज़िंदगी रुक-रुक कर चलने लगी
ये फ़िक्र-ए-फ़र्दा है महज़, या अब एतमाद नहीं रहा मुझपर

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