( कहानियाँ )
बनती बिगड़ती, आँखों के कोनों में पलती
जाने कितनी ही कहानियाँ ।
कुछ अश्कों में बहती, कुछ पलकों पर ठहरती
जाने कितनी ही कहानियाँ ।
कुछ शोर मचाती, कुछ खामोश गुज़र जाती
जाने कितनी ही कहानियाँ ।
बनती बिगड़ती, आँखों के कोनों में पलती
न जाने कितनी ही कहानियाँ ॥
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