उसे है सुबह की चिंता उसे है शाम की चिंता,
घुली रहती है हरदम वो नही आराम की चिंता।
आने वाले हैं प्रियतम बना दूँ चाय मैं जल्दी,
बड़े ही थक के आते हैं उन्हे है काम की चिंता।
अकेली रह के घर मे भी कभी वो बोर ना होती,
सजा देती है कमरा सोच हंसी शाम की चिंता।
कभी अपनी चाहत को औरतें तरजीह ना देती,
सताती रहती उनको अपने घनश्याम की चिंता।
घर की दहलीज के बाहर कभी पांव नही धरती,
करती रहती मायके और निज ग्राम की चिंता।
यही नारी की' चिंता है , यही है सोचना उसका ,
करे कोई कभी उनकी थकी मुस्कान की चिंता !
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