QUOTES ON #कल्पना

#कल्पना quotes

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15 APR 2020 AT 1:23

मैंने बारिश में भीगना चाहा
चौक में जंगल उग आया
बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था
तो एहसास में भीग कर ही
प्रेम कर लिया मैंने ..
..
मुझे चाँद छूना था
रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली
हाथ कुछ तारे लगे
धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए
प्रेम कल्पना है कोरी ..
..
प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।

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12 JUN 2019 AT 7:46

अनुभूति के
रस में डूबकर
मनोभाव जब
स्थिर हो जाता है
तब भवसागर में
विचारों की वेगवान
अनंत लहरें भी
रोक नहीं पाती
मिलने से....
कल्पना को कवि से
प्रेमी को प्रियतम से
आत्मा को परमात्मा से
बिम्ब को प्रतिबिम्ब से!

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17 JUN 2019 AT 3:05

कुछ कल्पनाएं,
बस कल्पनाओं
में ही जंचती हैं।
वास्तविकता बन,
आँख की
किरकिरी सी
चुभती हैं।

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31 JAN 2019 AT 20:59

वास्तविकता के चरम बिंदु पर
आस्तित्वहीन, तुम्हारा चिंतन
कल्पनाओं में सजीव तुम
जहाँ तुम स्थिर, और मैं
प्रेम के समक्ष अवनमन
प्रतिबिंब प्रेरित करता है
आगे बढ़ती हूंँ
तुम्हें समेटने के लिए
ढूंढती हूँ अनुभूति गहन
जो तृप्त कर दे
अंतरात्मा को
मूक छवि धूमिल पाती हूँ
नितांत निशब्द, निशांत मैं
जैसे हो कोई दर्पण
स्तब्ध धरा पर ओस की बूंद सा
अनुराग समस्त तुमपर अर्पण....

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12 MAY 2020 AT 20:03

कविता बनाने की विधि


कल्पना की हाँडी
अतीत के चूल्हे पर रखिए,
धीमी आँच पर मन जलाइये...

शब्दों को डालकर...
पंक्तियों के चम्मच से
हिलाते रहिये!
भावों की सुगन्ध लीजिए!
कुछ और शब्द डालिए...

कविता तैयार हो रही है!

सावधानी: मन की आग बहुत अधिक न हो, इससे कविता नष्ट हो सकती है

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23 MAY 2020 AT 3:14

अच्छा लिखने के लिए
अच्छा पढ़ना जरूरी है।
- राहत इन्दौरी


अच्छी कल्पना के लिए
अच्छी प्रेरणा जरूरी है।

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19 MAY 2020 AT 4:40

कभी कल्पना में
देखती हूँ मैं तुम्हें
किसी और के संग जाते हुए
सुखी जीवन बिताते हुए...

कुछ पल के लिए
मुस्कुराती हूँ
तुम्हें सुखी देखकर...

कुछ पल के लिए
अपनी व्यथा भूल जाती हूँ मैं।

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8 JUN 2020 AT 21:14

उसने "हाँ" तो नहीं की थी
उम्र के "तीस' पार हो गए
उसे सोचते-सोचते...,

अब भी है उम्मीद-ए-हसरत
कम्बख़्त....
उसनें "नां" भी तो नहीं की थी,

यह मुहब्बत भी ना..!

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6 JAN 2021 AT 11:08

कल.. क्या ख़ूबसूरत.. हम रात गुजारे
ख्वाबों के शयन पे था मैं.. प्रिय साथ तुम्हारे,
थे कल्पनाओं की चादर पे एहसास सब नग्न
उफ़्फ़..बड़ती सी वो धड़कनों की गति..
औऱ साँसें वो मद्धम-मद्धम,
जिस्म पे तुम्हारे चुंबन से बनते वो कोमल से छल्ले
तुम्हारे स्पर्श की तपस में सूखते जिस्म के दो पल्ले,
थे होंठ से होंठ.. बाहों से बाहें लिपटी
मिटती तृष्णाओं की वो असीम सी तृप्ति,

आँख खुली तो.. अंतहीन खेद था
मुहब्बत का यथार्थ तो प्रिय..
अब भी अभेद्य था!!

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29 SEP 2020 AT 20:58

क्या है यह क्यूँ चेहरा.. ज़र्द सा रहता है
जिस्म तपता है.. औऱ सीने में दर्द सा रहता है,

इक़ बौझ सा है सर पे..
जैसे कोई कर्ज़ सा रहता है
इक़ रिश्ता है टूटा सा
क्यूँ निभाना.. फर्ज़ सा रहता है,

मुहब्बत है यह.. या क्या कोई है.. वबा सी
के ज़िन्दगी भर.. मर्ज़ सा रहता है
धूप निकलती नहीं औऱ मौसम है के
बारह महीनें सर्द सा.. रहता है,

क्या है यह क्यूँ चेहरा.. ज़र्द सा रहता है!

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