मैं कोई कलम की कलाकार तो नहीं,
बस लिख लेती हूं मन में विचरते भावों को,
कागज रूपी धरातल पर,
थोड़े से शाब्दिक ज्ञान रूपी हवा से,
तो कुछ लिखने के जुनून रूपी पानी से,
और कविता रुपी यह पौधा देता है मुझे,
अपार सुकूनरुपी ठंडी छांव,
प्रेरित करता है और लेखन रूपी बीजों को,
इस धरा में बीजने पर,
नाम रुपी फल-फूल की चाह नहीं है मुझे,
मैं बस सुकून रुपी ठंडी छावं से खुश हूं,
स्व के इस लेखन रुपी मिजाज से खुश हुँ ।
©मृदुला राजपुरोहित ✍️
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