कहानींया बट गई किस्सों में है
नहीं कुछ भी मेरे हिस्से में है!
ये चलती फिरती दुकान हैं
ना मंजिल नही कोई मुकाम है !
कैद तो आज वो भी परीदां हैं
जिसके कभी घुमा पूरा आकाश हैं!
यहां एक साथ कई झमेला हैं
अपने अंदर कुछ नहीं टटोला है!
परत दर परत ओढ़े नकाब हैं!
धुंध कोहरे में जैसे साफ़ आसमां हैं!
कभी इसके तो कभी उसके चर्चे हैं
भई ये सब तो किस्मत के खर्चे हैं!
-(Taste_of_thoughts)
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