QUOTES ON #कर्ज़

#कर्ज़ quotes

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31 OCT 2019 AT 16:56

जब जावेद अख़्तर ने साहिर से लिए 200 रुपये

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2 JUN 2019 AT 8:27

एक बोझ सा महसूस होता है हर पल
लगता है जैसे जिंदगी नही कोई कर्ज हो

हर पल बस निभाए जा रहे हम रिश्तों को
लगता है चुकाना सिर्फ हमारा ही फर्ज हो

हर पल एक घुटन सी महसूस होती है
ऐसा लगता है जैसे हमे कोई मर्ज हो

यूँ दिए जा रही है गम हमे ये ज़िन्दगी
लगता है हमारी ख़ुशी से कोई हर्ज़ हो

सबको खुश रखने की कोशिस करते हैं
हम नही चाहते किसी के दिल में दर्द हो

हम तो अपनों को ही अपनी दुनिया समझते हैं
और उनके लिए तो हम, जैसे कोई सरदर्द हो

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3 MAR 2020 AT 8:58

राहों में तो चाहे फूल मगर हम बाग़ लगाना भूल गए,
गैरों की ख़ुशामद की पर अपनों को मनाना भूल गए!

ये ज़िन्दगी भी कोई क़र्ज़ है, अपना भी एक फ़र्ज़ है,
वहाँ सूद का लेना हराम है, हम मूल चुकाना भूल गए!

बड़ी लम्बी वो राह थी, बस उनसे मिलने की चाह थी,
उन उदास आँखों को देख के, ज़ख़्म दिखाना भूल गए!

कोई बात तो है जलवागर, किया तूने है ऐसा असर,
हुए जब से तेरे करीब हम, ये सारा ज़माना भूल गए!

वो जो पीछे है उस परदे के भला होगा वो कितना हसीं,
हुआ मुद्दतों में दीदार जब नज़रों को झुकाना भूल गए!

रहे उम्र भर ही कुछ जोड़ते उसे तेरे मेरे में तोड़ते,
इस खेल में "राज" क्या तुम हिसाब लगाना भूल गए!

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13 MAR 2018 AT 21:18

जिंदगी इस तरह तेरा हर कर्ज़ चूकाते हैं हम
ये क्या कम है कि तस्वीरों में मुस्कुराते हैं हम

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22 DEC 2017 AT 22:19

शांति गिरवी रखकर कर्ज़ सन्नाटे का लिया है,
तंगी होकर भी मुस्कुराहट से ब्याज चुकाया हैं!

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1 JUL 2017 AT 20:16

कर्ज़ जो लिया था तेरी मोहब्बत का,
दिल के हर टूटे हिस्से से क़िस्त चुका रही हूँ!

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21 JAN 2020 AT 20:32

तुम आवाज देना मैं लौट आऊंगा
बिछड़ के रूह से जी नही पाऊंगा
दूरियों से जब मन भर जाए तेरा
धीरे पुकारना मैं हवा में बिखर जाऊंगा
महसूस करे जब कमी 'वफ़ा' की
रो देना थोड़ा सा मैं बनके मुस्कान
तेरे होंटो पे बिखर जाऊंगा
जब दुनिया लगने लगे तमाशा
याद करना मैं बनके तेरे चित का चोर
तेरे दिल में तेरे समा जाऊंगा।।
कभी जो तेरे बच्चे सवाल करे
उनको सुनाना कहानी "तोमर" प्रेम की
मैं 'वफ़ा' का कर्ज़ उतार जाऊंगा।।
तुम देना आवाज मै लौट आऊँगा....




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6 MAR 2018 AT 10:35

यूँ की...

शान-ओ-शौकत की फिकर में मुसलसल उधार लिए फिरते हो,
क्यूँ दौलत-ए-रुख़सार पर तोहमत-ए-बाज़ार लिए फिरते हो..

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30 JUL 2020 AT 9:37

पल-पल बढ़ती महगाई में,
बच्चे को हँसाना जरूरी था,
घर में पैसो की किल्लत थी,
बच्चे को पढ़ाना जरूरी था।
तब कर्ज़ उठाना जरूरी था....1
भूखे रहकर राते काटी,
बहाने बनाना जरूरी था,
तुम खालो मुझको भूख नहीं,
बच्चे को खिलाना जरूरी था।
तब कर्ज़ उठाना जरूरी था ...2
शहरों की शिक्षा मंहगी थी,
महँगा था वहा का रहन-सहन,
ऊँचे थे वहा के लोग सभी,
महँगा था उनका घर आँगन,
उन ऊँचे लोगो की नज़रों में,
उसे बेहतर दिखलाना जरूरी था।
तब कर्ज़ उठाना जरूरी था....3
झूटी थी हँसी बेशक़ मेरी,
लाखो मुश्किल दामन में थी,
इन मुश्किल हालातो के बीच कही,
हँसकर दिखलाना जरूरी था।
तब कर्ज़ उठाना जरूरी था.....4

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2 DEC 2020 AT 13:19

सोच रहा हूं, कुछ कर्ज़ उधार ले लूं,
उस बूढ़ी माँ की ममता एक बार ले लू।
कांपते उसके हाथों एक बार, अपने हाथ ले लू
यहाँ से थोड़े दिनों के लिये उसके साथ आबाद ले लू।

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