बहुत जख्म दे रही है जिंदगी......
शायद अब ये दर्द की अमानत हो गई,
यूं मिलकर जो कोशिश की थी तुमने,
शायद इसीलिए आज जमानत हो गई।
वरना परिंदों से कैद होते हम आज भी,
खुली हवा में जिंदगी तो आसान हो गई।
शुक्रगुजार हूं आपका क्या कहूं मैं अब,
यू जिंदगी आपकी कर्जदार हो गई।
ना कोई शिकवा है ना शिकायत,
बस इस कायनात में इनायत हो गई।
जहां में खुश रह के खुशहाली बांटो,
बदहाली तो भंवरों से दूर हो गई।
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