दिल अपना पराया लगने लगे... इस कदर अच्छा ना कोई लगने लगे खुद से ही बात यह छुपाते हैं... कहीं इसकी उसे खबर ना लगे ना ही वह दोस्त है ना दुश्मन है... फिर भी दिल का करार लगने लगे छुप के देखा करे हैं दुनिया से.. डर है उसको मेरी नजर ना लगे...
बुरी निगाहों से जो शिकार करते हो रंग रूप देखकर फिर प्यार करते हो दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो खुद कैसे हो कभी आईना तो देखते बुराईयाँ लोगों की हजार करते हो दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो खुद बिगड़ते जा रहे हो दिनों दिन पूरा जहां सुधारने के करार करते हो दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो नक़द मिल जाती है बेनाम से ग़ज़लें तुम्हें मगर तुम वाह-वाह करने में भी ऊधार करते हो दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो
कोई हसीन सा बहाना बनाकर, कोई बेवजह की बात बताकर, तुम मेरी तेरी बात जब अधूरी छोड़ जाते हो, वो जो इस बार तय किया था भूल जाते हो, उठ के जाने की बारी मेरी थी, रोकने के फ़र्ज़ तुम्हारे थे |