QUOTES ON #कपड़े

#कपड़े quotes

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26 MAR 2019 AT 9:26

वह
गंगा किनारे
कपड़े धो रही है..

मन ही मन
सफ़ेदपोशों कि
काली करतूतों पर
रो रही है...

वस्त्रों पर साबुन लगाती
पत्थर पर पछीटती
कभी हाथों से मसलती
कभी इकठ्ठा कर घूँसे बरसाती
तो कभी पानी में खंगालती...

नहीं निकाल पा रही है
कपड़ों की धवलता में
छुपी मलिनता को..

सफ़ेदपोशी
भीतर तक काली है..

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7 SEP 2018 AT 0:19

सोच छोटी नही वो मेरे कपड़ों को छोटा बताते है,

बलात्कार करके वो बलात्कारी नही, तो मुझे चरित्रहीन क्यों बुलाते है।।

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5 MAR 2018 AT 12:10

तन के कपड़े भी फट जाते है,
तब कहीं एक फसल लहलहाती है।
और लोग कहते है किसान के
जिस्म से पसीने की बदबू आती है।

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20 NOV 2017 AT 1:25

अच्छा है जो कपड़े बोल नहीं पाते,
अगर बोल पाते तो कई राज खोल जाते।
चमकती शर्ट भी जानती है, किसका मन कितना मैला है,
और पैंट बता देती कौन कहाँ से कितना फैला है।

बड़ी शिकायत है शर्ट के कॉलर को,
सबसे ज्यादा यही घिसी जाती है।
उसके बाद है आस्तीन की बारी,
दुश्मन कोई और होता है, बदनाम ये हो जाती है।

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21 DEC 2017 AT 12:35

कपड़ों की दुनिया और संस्कृति (व्यंग्य)

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18 FEB 2018 AT 21:28

उसके जूते चमक रहे थे। कपड़ों की चमक भी देखने लायक थी। आँखों में भी एक अलग सी चमक थी। मगर उसकी दृष्टि जहाँ गड़ी थी उससे उसकी मन की मलिनता साफ दिखाई दे रही थी।

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8 JAN 2017 AT 17:23

अगर कपड़े बोल पाते,
'तुझे' बेनक़ाब कर जाते।

तेरी वो मानसिकता..तेरी घटिया सोच,
सबकी परतें ख़ोल जाते।

तेरी हर एक ओछी हरकत बताते,
तेरी गन्दी नज़रों को देख..
अपनी नज़रों से ही रोते जाते।

शुक्र मना ऐ ज़ालिम,
की कपडे बोल नहीं पाते।

वरना तुझ जैसे भेड़िये,
इस समाज में टिक नहीं पाते।
- साकेत गर्ग

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15 FEB 2018 AT 23:11

मैं बाँटा करता था उसके साथ,
कमरा,
कपड़े,
किताबें,
और कभी कभी खुद को भी।
खुशियाँ दुगुनी हो जाती,
और गम आधे।
पर एक दिन अचानक,
मन बँट गया,
और उसके साथ साथ,
वो सब कुछ,
जो हम बाँटा करते थे,
एक दूसरे से।

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4 MAY 2018 AT 9:06

गरीब,
फटे-हाल बच्चा,
कपड़ों के आलीशान,
शोरूम के बाहर खड़ा,
सोच रहा है..

शो-केस में खड़े,
'मैनेक्विन' को,
कपड़ों से सजा देख,
मन ही मन,
खुदा को कोस रहा है..

बनाना ही था तो,
'मैनेक्विन' बनाया होता,
'मैन' बना कर,
क्यूँ रुक गये,
काश 'क्विन' भी,
लगाया होता..

डब-डबाई आँखों से,
बूँद बन कर,
सवाल झर रहे हैं,
आदम नंगा है,
पुतले सज रहे हैं...

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18 JUL 2020 AT 9:40

"तुम अपनी हर कहानी में नायिका के कपड़े क्यों उतारते हो?"

"मेरी नायिकाएँ ऐसे ही समाज में पल रही हैं।"

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