तुम जानते हो मैं क्यों जिंदा हूं अभी ताकि खुद को मार सकूँ,
तुम्हें क्या लगता है मैं खुद को आसानी से मार लूँगा
न इस गलतफहमी में न रहना मुझे तो खुद को जिंदा रखकर मारना है,
पता है जिंदा रहकर कैसे मरा जाता है,बताता हूँ,
मैं वक्त तेजी से काटता चला जा रहा हूँ और वक्त मुझे धीरे धीरे,
वो मुझे काटने के लिए आरी नहीं रखता बस कुछ तकलीफों को मेरी पीठ पर लाद देता है,
तुम्हें पता नहीं तुम भी मर रहे हो ,तकलीफों को मारते मारते,
जब तुम पूरे जिंदा थे तो तुम्हारी हंसी में समीर जैसा सुकून था
फिर जब आधे जिंदा थे तब हवा जैसा सुकून बचा था,
अब जब पूरे मर चुके हो तो लू जैसा सुकून तुम्हें छीले दे रहा है,
तुम्हें अहसास भी नहीं हुआ कि तुमने कब खिलखिलाकर हंसना छोड़ दिया,
कब तुम बस मुस्करा के काम चलाने लगे ,
एक समय आया जब वक्त ने तुम्हें यूँ काटा कि तुम्हारी मुस्कान भी बनावटी होती चली गयी,
अब तो वो भी बस इमोजी तक ही सीमित होकर रह गयी है ,
तुम्हें पता है कब तुम्हें बच्चों के साथ खेलना बचकाना लगने लगा ,
कब तुम्हारी हरकतों में बड़प्पन ने खुद ब खुद पैर पसार लिये,
तुमने आखरी बार कब जोर जोर से कविता गाई थी ,
तुम्हें कब अकेले रहना अच्छा लगने लगा,
कब तुम भीड़ में भी अकेले हो गए ,
मुश्किलों को काटते काटते कब खुद को काटते चले गए तुम जान भी न सके,
पता है तुम बड़े नहीं हुए तुम मर गए हो।
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