अकेली-सी रात में जागती मेरी तन्हाईयों का दौर भी है फिर कभी कहूंगा मैं तुमसे कहने को तो बातें और भी है... बीत जाने दो इस रात को गुंजती-सी खामोशियों में गीतों से सजी रातें और भी है... मुंह मोड़ लो देखकर मुझे इस दफा़ कोई बात नहीं अभी होनी मुलाकातें और भी है... छलक उठेंगे आंखों के पैमाने भीगने से कितना बचोगे तुम अभी होनी बरसातें और भी है...